अगली बार जब आपसे बस या मेट्रो में कोई सीट मांगे तो खड़े होने में हिचकिचाना मत। ऐसा करके आप पुण्य भी कमाएंगे और अपनी उम्र भी बढ़ाएंगे। वैज्ञानिक कहते हैं कि बैठने की आदत कम करेंगे तो लंबा जिएंगे।
आजकल हम लोगों के पास सुबह जागने के बाद एक ही काम होता है और वो है बैठना। ऑफिस जाने वाले लोग आठ घंटे या उससे भी ज्यादा समय तक बैठे रहते हैं। जो लोग जिम वगैरा जाते हैं वो भी एक घंटा जिम में बिताते हैं मगर बाकी टाइम अक्सर बैठना होता है।
हाल फिलहाल में हुए कई अध्ययनों ने बताया है कि बैठने और बीमारी में बहुत मजबूत रिश्ता है। स्वीडन के वैज्ञानिकों ने इस रिश्ते की गहराई जानने के लिए एक परीक्षण किया।
उन्होंने लोगों के बैठे रहने के टाइम में बदलाव किया और देखा कि क्या इससे उनकी साइकोलॉजी में कोई बदलाव आया?
वैज्ञानिकों ने खासतौर पर यह जानने की कोशिश की कि उनके टेलोमेरस (telomeres) पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है। हमारे डीएनए के आखिरी छोर पर एक कैप की तरह यह मौजूद होता है। उम्र बढ़ने के साथ यह छोटा हो जाता है। इस बात के भी सबूत हैं कि अगर लाइस्टाइल हेल्दी हो तो टेलोमेरस की लंबाई भी बढ़ जाती है।
बहरहाल स्वीडन के वैज्ञानिकों ने बैठे रहने वाले और मोटे कुछ पुरुषों और महिलाओं की एक टीम बनाई। सबकी उम्र 68 साल थी। सबसे पहले उनके खून का सैंपल लेकर टेलोमेरस की हालत का जायजा लिया गया। फिर इनमे से आधे लोगों के बैठे रहने का टाइम कम किया गया और उन्हें कुछ कसरत वगैरा भी कराई गई।
छह माह के बाद टीम के सभी सदस्यों के खून के नमूने लेकर उसकी जांच हुई।
जिन लोगों ने अपने बैठने के वक्त में कटौती की उनके टेलोमेरस लंबे हो गए थे और जो लोग पहले की तरह ही जी रहे थे उनके टेलोमेरस और छोटे हो गए थे। कम बैठने वाले लोग खुद को पहले के मुकाबले दिमागी तौर पर जवान भी महसूस कर रहे थे। अध्ययन की खास बात यह रही की टेलोमेरस की लंबाई पर कसरत का कुछ खास असर नहीं दिखा बल्िक बैठने के वक्त में कटौती से इस पर बहुत फर्क पड़ा।