जब किसी को गुस्सा आता है तो उसे एक गिलास ठंडा पानी पीने की सलाह दी जाती है। कहते हैं इससे गुस्सा कूल ऑफ हो जाता है। बात सही है मगर क्या आप जानते हैं कि गुस्से को ठंडा करने का काम पानी नहीं करता। इस एक गिलास पानी के पीछे बहुत ही बारीक योग विज्ञान है।
पानी की तासीर बेशक ठंडी होती है मगर गुस्सा पानी नहीं सांस ठंडा करती है। इसका असली साइंस ये है कि जब हम पानी पीते हैं सांस नहीं लेते। यह दोनों काम एक वक्त पर संभव नहीं हैं। हमारे सांस लेने की रफ्तार कम होने से हमारा मन शांत होता है। अब किसी भड़के हुए शख्स को प्राणायाम करने तो कह नहीं सकते तो ये रास्ता निकाला गया है। हठयोग प्रदीपिका के अनुसार
चले वाते चलं चित्तं, निश्चले निश्चल भवेत्।।
इसका मतलब ये है कि हमारा चित्त हमारी सांसों से चलता है। सांसों में बेचैनी बढ़ेगी तो दिमाग में बेचैनी बढ़ेगी। अगर वो शांत होगी तो मन भी शांत होगा।
मोरारजी देसाई नेशनल इंस्टीट्यृट ऑफ योगा में योग के शिक्षक विनय कुमार भारती कहते हैं कि जब किसी को गुस्सा आता है तो उसकी सांस लेने की रफ्तार बढ़ जाती है। जैसे ही हमारे दिमाग में बेचैनी बढ़ती है सांसे भी बेचैन हो जाती हैं। ऐसे में हम दिमाग को इतनी आसानी से नहीं पकड़ सकते मगर हां सांसों पर ध्यान देकर हम अपना गुस्सा या घबराहट या बेचैनी कम कर सकते हैं। जैसे यह तय है कि दिमाग के बेचैन होने पर सांसें तेज हो जाती हैं वैसे ही यह भी तय है कि सांस धीमी और गहरी होती जाएंगी तो मन भी शांत और स्थिर होता जाएगा। खुद आजमा कर देख सकते हैं आप तेज तेज सांस लेते हुए हंस नहीं सकते और हंसते हुए तेज तेज सांस नहीं ले सकते।
हमारी सांस का हमारे मन से सीधा और बहुत गहरा संबंध है। इसी संबंध को सुधारने और संवारने काम प्राणायाम के द्वारा किया जाता है। और यहीं से निकला है एक गिलास पानी का फॉर्मूला।
कहा जाता है कि हमारे दिमाग पर हमारा सीधा कंट्रोल नहीं है मगर अपनी सांसों के जरिये कुछ हद तक उसे कंट्रोल कर सकते हैं। हम अपनी भावनाओं और अपने मन को सांसों की गति से काबू में ला सकते हैं। इसीलिये योग में सांसों की रफ्तार पर बहुत ध्यान दिया जाता है। कभी आप भी कोशिश करके देख लें। जब किसी को गुस्सा आए तो बस उसे गहरी लंबी सांसे लेने को बोलें अगर उसे चंद गहरी सांसें भर लीं तो उसका गुस्सा तुरंत शांत हो जायेगा।