- जो अनुभव में आ गया वह सत्य बन जाता है
- आसन योग का एक छोटा सा हिस्सा है
- प्रज्ञा, जिसको जानने के बाद कुछ जानना शेष न रहे
- मोक्ष ही योग साधना का उद्देश्य है
- डॉक्टरों ने कहा दिया था, खतरनाक हो गई हूं मैं
- भोजन किए बिना साल बिता देते हैं मानेक
- चार घोड़ों के रथ को रोक दिया था स्वामी दयानंद ने
भारतीय संस्कृति में रमे-बसे प्रसिद्ध लेखक अमीश त्रिपाठी कहते हैं, ‘बहुत अच्छा लग रहा है और मैं रोमांचित हूं कि अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस के जरिये पूरी दुनिया ऐसी शुरुआत कर रही है जो हमारे मनीषियों की ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:, सर्वे सन्तु निरामया:’ के सूत्र की वैश्विक पुष्टि है। बेशक योग सनातन धर्म से पैदा हुआ है, लेकिन यह हम भारतीय लोगों की तरफ से दुनिया को एक भेंट है। योग साधना करने से इन्सान के तन, मन और आत्मा को शांति मिलती है।’
योग सिर्फ एक व्यायाम नहीं है बल्कि इसका एक सांस्कृतिक आयाम है। यह जीवन को पूरी तरह बदल देता है। आधुनिक जीवनशैली से हमने जितनी खराबियां बटोरी हैं, यह उनको दूर करता है और हमें सुख व प्रसन्नता देने वाला है। शुरुआत बेशक शरीर से होती है लेकिन प्राण ऊर्जा के प्रसार के साथ यह जीवन के तमाम पहलुओं को निखारता है।
चरित्र बदल देता है योग
वर्षों से योग पर अनुसंधान कर रहे देश के जाने-माने एन्डोक्रनोलॉजिस्ट डॉ. विपिन मिश्रा योग को एक स्वस्थ, समझदार, शांतिप्रिय और उदार दुनिया बनाने का प्रमुख उपकरण मानते हैं। बताते हैं, ‘ योग, ध्यान, प्राणायाम करने से व्यक्ति का चरित्र बदल जाता है। बुरा आदमी निश्चित तौर पर अच्छा बन सकता है। आखिर यह समझना पड़ेगा कि जो आदमी झूठ बोलता है, चोरी करता है, भ्रष्टाचार में लिप्त है वह आखिर ऐसा क्यों है? वह ऐसा इसलिए है क्योंकि वह अपने जीवन से असंतुष्ट है। उसको जीवन में ऐसा कुछ चाहिए जो उसे बाहर से मिलता हुआ दिखता है। जो आदमी योग करता है वह अपने आंतरिक (कोर), अपने अंतरतम से जुड़ जाता है और वहां पर नैसर्गिक प्रसन्नता है, नैसर्गिक आनंद है।’
इसे होलिस्टिक थैरेपी कह सकते हैं
भले मैगी, पिज्जा, कोक-पेप्सी का सेवन करने से पहले कोई नहीं पूछता कि मैं इसे क्यों लूं। लेकिन योग के बारे में सवाल उठाये जाते हैं कि हम योग क्यों करें, इसे करने से मेरा क्या फायदा होगा? दरअसल योग को हम समग्र चिकित्सा या होलिस्टिक थैरेपी कह सकते हैं, जो शरीर और मन के हर तल पर निश्चित फायदा करता है। डॉ. मिश्रा कहते हैं कि हर इन्सान को योग करना चाहिए। योग करने का केवल एक कारण है कि आप इन्सान हैं इसलिए आप योग करें। योग के बिना इन्सान अपूर्ण है। यह शरीर को मजबूत बनाता है, दिमाग को सेहतमंद रखता है, तरह-तरह के तनाव, चिंता, अवसाद आदि को दूर करता है और आयु लम्बी होती है। भारत की पहल पर पूरी दुनिया ने जितनी जल्दी योग को अपनाने की हामी भरी उससे तो यही लगता है कि लोग किसी के आवाज उठाने का इंतजार कर रहे थे और जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने की बात रखी तो 90 दिनों के भीतर ही पूरी दुनिया ने योग को गले लगा लिया जो अपने आप में एक कीर्तिमान है।
उपदेश को नकार सकते हैं पर सत्य को नहीं
यह करिश्मा इसलिए भी हुआ कि एक योगी के प्रेम, समर्पण, संकल्प और आस्था से हर वह व्यक्ति कायल हुआ जो उसके संपर्क में आया। दुनियाभर के लोगों और नेताओं ने जब मोदी में योग के प्रभाव का अनुभव किया तो उसे नकारना मुश्किल था। आप जानकारी को, सूचना को, उपदेश को तो नकार सकते हैं लेकिन जो आपके अनुभव में आ गया वह आपके लिए सत्य बन जाता है। क्या आप रोज योग करते हैं? आपने योग का प्रभाव महसूस किया है? अमीश त्रिपाठी बहुत भावुक होकर बताते हैं, ‘मेरे बाबा (पिताजी के पिताजी) काशी में पंडित थे। उन्होंने ही हम सब को हमारे धर्म और शास्त्र के बारे में सिखाया। पता नहीं मैं योग ठीक से सीख पाया कि नहीं, लेकिन हां, मैं योग साधना करता हूं। इससे मेरे शरीर को लाभ हुआ है और मन को भी शांति मिलती है। इतना कुछ लिखना-जानना और दोस्तों-परिवार और खुद को भी खुश रख पाना योग के बिना शायद संभव न हो पाता। मैं इसकी कल्पना भी नहीं कर सकता।
एक तो हुआ व्यायाम वाला योग जिसमें कुछ आसन होते हैं। यह योग का एक छोटा सा हिस्सा है जिसे ज्यादातर लोग करते हैं। फिर प्राणायाम से मन की अवस्था को सजग रखा जा सकता है। लेकिन योग संपूर्णता में एक पूरा सांस्कृतिक आयाम है जो पूरे समाज और वातावरण को प्रसन्नता व ऊर्जा से भर देता है। जलवायु तक पर पड़े दुष्प्रभावों को कम करता है। योग के आठ अंग हैं। अमीश को नई पीढ़ी के साथियों से कहना है, ‘एक चीज है आजकल कि लोग योग को सिर्फ एक व्यायाम का तरीका समझने लगे हैं। लेकिन योग सिर्फ आपके शरीर के स्वास्थ्य के लिए नहीं है। इससे इन्सान के मन और आत्मा को भी शांति मिल सकती है। तो मेरा सुझाव यह होगा कि अगर आप योग करें, तो पूरी तरह से करें।’
डॉक्टरों ने कहा दिया, बच्चे के लिए खतरनाक हो गई हूं मैं
एक सच्चा वाकया सुनिए। बिन्दु 32 वर्ष की है और इस समय बंगलुरु में रहती है। बड़ा बेटा चार साल और छोटी बेटी छह महीने की है। दूसरी बार गर्भधारण के दौरान उसके साथ कई घटनाएं घटीं। दुनिया की दूसरे नंबर की आईटी फर्म में अच्छे पद पर होने के बावजूद उसे सिर्फ इसलिए हटा दिया गया कि उसके गर्भवती होने से कंपनी को एतराज था। अचानक ही वह भयंकर अवसाद में चली गई। परसों उसने खुद ही फोन पर बताया, ‘अगर उस समय आप मुझे देखते तो पहचान ही नहीं पाते। मुझे अपना कोई होश नहीं रहता था। न बच्चों की देखभाल कर पाती थी, न पति की। अपने शरीर का ख्याल तक नहीं रखती थी। जिंदगी से बुरी तरह ऊब चुकी थी। बेंगलुरु में मानसिक रोगों के प्रसिद्ध निम्हेंस हॉस्पिटल में मैं भर्ती रही और डॉक्टरों का कहना था कि मेरा घर में बच्चे के साथ रहना बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं है। मैं कुछ भी कर सकती थी। ऐसी बुरी हालत हो गई थी मेरी।’
यह जानना ज्यादा जरूरी था कि वह इस हालत से उबरी कैसे? बिन्दु ने बताया, ‘निम्हेंस के डॉक्टर मुझे अस्पताल से छुट्टी देने को राजी नहीं थे। फिर मेरे पति के यह कहने पर कि वे दिल्ली में घर पर नर्स रखकर मेरी देखभाल करेंगे, मुझे छुट्टी दे दी गई। उन्होंने पति से लिखवाया कि वे मुझे अस्पताल से जबरदस्ती छुट्टी दिलाकर ले जा रहे हैं। तमाम दवाएं साथ थीं।… कोई चार महीने पहले मैं संगीता दीदी के संपर्क में आई और उन्होंने मुझे योग- प्राणायाम सिखाया। मेरे लिए वह देवदूत के समान हैं। करीब छह दिन बाद ही मुझमें फर्क आने लगा और आज मैं अपने पूरे परिवार की पूरी देखभाल करती हूं, समाजसेवा भी करती हूं और बहुत-बहुत खुश हूं। इसलिए मैं इतना जानती हूं कि योग से ज्यादा शक्तिशाली दुनिया में कुछ भी नहीं है।’
यह बात आपको प्रचार जैसी भले लग रही हो लेकिन जिसके जीवन में घटी है उसके लिए सत्य का अनुभव है। बस कुछ भ्रांतियों से बचिएगा। जैसे इसे बीमारी दूर करने भर का जरिया मत मान लीजिएगा। बीमार हों तो इलाज मत छोड़ें। साथ में योग अपनाएंगे तो यह स्वास्थ्य से साथ ऐसी खुशी और पूर्णता भी देगा जो जीवन में आती है तो टिकती भी है। आप दूसरों में खुशी लाने के संवाहक बन जाते हैं। योग का सबसे गहरा सूत्र है कि हम केवल मन नहीं हैं, शरीर नहीं हैं।
सब कुछ बदल रहा है लेकिन अंदर कुछ ऐसा है जो आज भी वैसा ही है, जैसा एक साल की उम्र में था और जब हम मां के पेट में थे तब भी वैसा ही था। उस ‘कॉमन थ्रेड’ की पहचान तक पहुंचने का मार्ग है योग।
भोजन किए बिना साल बिता देते हैं मानेक
योग की महत्ता के कुछ उदाहरण और देखते हैं। सहज मुनि और हीरा रतन मानेक किसी भी प्रकार का भोजन लिए बिना साल-साल बिता देते हैं। इस पर भारत के वैज्ञानिकों ने कोई ध्यान नहीं दिया लेकिन अमरीका के वैज्ञानिक, न्यूरोलॉजिस्ट, ऑपथाल्मोलॉजिस्ट आदि 8 विभिन्न विषयों के विशेषज्ञों की निगरानी में रखने के बाद मानेक को नासा के वैज्ञानिक अपने साथ ले गए। स्वामी दयानंद ने चार घोड़ों के रथ को हाथ से पकड़कर चलने नहीं दिया था। गंधबाबा स्वामी विशुद्धानन्द कोई भी गंध या स्थूल वस्तु शून्य से प्रकट कर देते थे और स्वामी प्रणवानन्द एक साथ दो स्थानों पर देखे गए थे (योगी कथामृत, परमहंस योगानन्द)। अनेक योगियों के आकाशगमन के किस्से पढ़ने-सुनने को मिल जाते हैं । क्या योग जादूगरी है? क्या सम्मोहन या शैतानी विद्या है? (कुछ वर्ष पूर्व वेटिकन के प्रमुख ने ऐसा कहा था)
क्या आज का योग और पुरातन योग अलग अलग हैं
अनेक प्रसिद्ध नामों और उनके मानने वालों के असीम विश्वास के बीच हम किस योग को ठीक, प्रामाणिक और उच्चतर मानें, ये सहज जिज्ञासा मन में उठती है। प्रत्यक्ष प्रमाण होता है; और अनुभव कर के आए हुए व्यक्ति का कथन (आप्त वचन) और शास्त्र प्रमाण होता है – प्रत्यक्ष अनुमान आगमा: प्रमाणानि। शास्त्र कहता है योगी कल्पनातीत शक्तियों का स्वामी होता है, अनेक रूप धारण कर सकता है। एक तरफ सांप को छड़ी और छड़ी को सांप में बदलने जैसी बातों को स्वामी दयानंद बाजीगरी का तमाशा कहते हैं। दूसरी तरफ वही स्वामी दयानंद पद्मासन में स्थित हो हवा में, अधर देखे गए । रोमांच से भरपूर योग अधिकांश लोगों के लिए आज भी रहस्य ही है। आखिर क्या ठीक है, क्या गलत? योग के आदि प्रणेताओं ने इसे किस रूप में बताया? किस उद्देश्य से बताया? योग में चमत्कार का क्या स्थान बताया? योग के क्या क्या भेद बताए? क्या आज का योग और पुरातन योग अलग अलग हैं? इन प्रश्नों के उत्तर प्राचीन ऋषियों की वाणी से लेना ही अधिक प्रामाणिक होगा।
प्रज्ञा यानी ज्ञान, जिसको जानने के बाद कुछ जानना शेष न रहे
महर्षि पतंजलि ने कहा- द्रष्टा का, आत्मा का, अपने स्वरूप में अवस्थित होना योग है। महर्षि व्यास ने कहा- योग समाधि है। अन्यत्र कहा- जीवात्मा और परमात्मा की एकरूपता समाधि है और कहा- समाधि ही योग है। वहां केवल सत्य ज्ञान युक्त प्रज्ञा है। प्रज्ञा यानी ज्ञान, जिसको जानने के बाद कुछ जानना शेष न रहे, योग की स्थिति है। संपूर्ण बोध हो जाना योग है। बुद्ध हो जाना योग है। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि समाधि तक पहुंचने के लिए ज्ञान योग का आश्रय लिया या कर्म योग का। क्योंकि एक में सम्यक् टिका हुआ साधक अनायास ही दोनों का अभ्यास करता है अत: दोनों के फल- समाधि को, संसार बंधन से मुक्ति को, मोक्ष या निर्वाण को प्राप्त करता है। आत्मोपलब्धि या मोक्ष ही योग साधना का उद्देश्य है। जो शिक्षक आपको इस उद्देश्य के लिए प्रेरित नहीं करता या जिक्र नहीं करता, वह या तो स्वयं अंधेरे में है या आपको अनधिकारी/अनिच्छुक समझ रहा है।
साधक शक्तियों को दिखाता नहीं, लोग देख लेते हैं
स्वस्थ शरीर में ही परमात्मा प्राप्ति संभव है। इसलिए शरीर को रोगमुक्त बनाने और स्वस्थ बनाए रखने के उपाय योग में बताए गए हैं। आरोग्य और स्वास्थ्य प्राप्ति के बाद योग की सही मायने में शुरुआत होती है, इसीलिए स्वामी विवेकानंद ने कहा-भारत को मंदिरों से ज्यादा फुटबॉल के मैदानों की जरूरत है। श्रीमद् भगवद्गीता में कहा है- न अयं आत्मा बलहीनेन् लभ्य:। यह आत्मा बलहीन को प्राप्त नहीं होती, आत्म तत्व की उपलब्धि बलहीन को नहीं होती। इसी उपलब्धि के मार्ग में माया लालच का टुकड़ा (सिद्धियां – विशिष्ट शक्तियां) देती है। गुरुनिष्ठ साधक उन्हें परमात्मा को समर्पित कर देता है जबकि अहंकारी अपने अहंकार को और बढ़ा लेता है। साधक शक्तियों को दिखाता नहीं, लोग देख लेते हैं।
चार घोड़ों के रथ को रोक दिया था
प्राणायाम की उच्च अवस्थाओं में शरीर गुरुत्वाकर्षण से मुक्त होकर ऊपर उठ जाता है जिसे लोगों ने देखा है। (आधुनिक वैज्ञानिकों ने भी छोटी वस्तुओं को गुरुत्वाकर्षण से मुक्त करने में कुछ हद तक सफलता प्राप्त कर ली है)। ब्रह्मचर्य पर व्याख्यान देते हुए स्वामी दयानंद ने चुनौती सुनकर भी व्याख्यान जारी रखा लेकिन बाद में चार घोड़ों के रथ को रोक कर दो बातें बगैर कहे कह दीं । ब्रह्मचर्य पर जो बताया उसकी महत्ता अधिक है और बाद में ब्रह्मचर्य की शक्ति को दिखा भी दिया जिससे किसी बात पर संदेह न रहे। परंपरा से दो स्थितियों में चमत्कार दिखाया जाता है, शिष्य के मन का संदेह दूर कर उसे उच्चतर साधना के लिए प्रेरित करने के लिए और विषय को स्पष्टता से समझाने के लिए। अपने आप को बड़ा या महान दिखाना शक्ति प्रदर्शन का उद्देश्य नहीं होता। यदि कोई ऐसा करता है तो वह भ्रमित है और मान, मोह, लोभ के पाश में बंधा हुआ है।
इच्छाएं तो बंधन हैं, योगी मुक्ति चाहता है। जिसको कुछ नहीं चाहिए वही शहंशाह है। महर्षि पतञ्जलि ने कहा- समाधौ उपसर्गा: व्युत्थाने सिद्धय: – वे (इच्छाएं) समाधि (के मार्ग) में व्यवधान हैं और संसार में विशिष्ट शक्तियां हैं।
courtesy: panchjanya.com