आपके मुन्ना-मुन्नी को समय से ब्रश करवाने की जिम्मेदारी संभालने वाला आ गया है। इस कठिन काम को फन बनाने के लिए वैज्ञानिकों ने एक एप इजाद किया है। यह आपको व आपके बाल गोपाल को न सिर्फ ब्रश करने की याद दिलाता है बल्कि दस दौरान साथ भी देता है ताकि आप वाजिब समय तक यह काम करें। इसके साथ ही यह तयशुदा वक्त पर ब्रश बदलने और डॉक्टर से मिलने की सलाह देता है।
इस एप को 2011 में ब्रिटेन में लांच किया गया था और यह इतना पॉपुलर हुआ कि 2013 में इसे ब्रिटेन की नेशनल हेल्थ सर्विस की हेल्थ एप लाइब्रेरी का हिस्सा बना लिया गया। इसका नाम है ब्रश डीजे। यह एप पूरी तरह से मुफ्त है। वर्ष 2015 के फरवरी माह तक 188 देशों के 1,97,000 डिवाइसों पर ब्रश डीजे को डाउनलोड किया गया।
यह एप दो मिनट तक म्यूजिक चलाता है। म्यूजिक आपकी प्लेलिस्ट से या फिर अपने क्लाउड से खुद चुन लेता है। आप भी म्यूजिक सेट कर सकते हैं। दो मिनट तक म्यूजिक इसलिए चलता है क्योंकि डॉक्टरों का मानना है कि कम से कम इतनी देर तो आपको ब्रश करना ही चाहिए।
यही नहीं यह एप दिन मे दो बार ब्रश करने की याद दिलाता है और दिन में एक आध बार माउथवॉश इस्तेमाल करने को भी कहता है। इसके अलावा यह तीन माह में टूथ ब्रश बदलने का भी अलर्ट भेजता है। कुल मिलाकर यह बच्चों के लिए ब्रशिंग को एक फन बनाता है।
इस एप को लेकर की गई एक रिसर्च के मुताबिक 70 फीसदी लोगों ने माना कि इस एप को डाउनलोड करने के बाद उनके दांत पहले के मुकाबले ज्यादा साफ महसूस होते हैं। वहीं 88 फीसदी ने माना कि ब्रश डीजे ने उन्हें ब्रश करने के लिए मोटीवेट करने का काम किया है। 90 फीसदी लोगों ने कहा कि वह अपने दोस्तों और जानकारों को इस एप को इस्तेमाल करने की सलाह देंगे।
रिसर्च करने वाली टीम ने कहा कि ब्रश डीजे युवाओं को ब्रश करने के लिए सही ढंग से प्रोत्साहित करता है और यह दांतों के स्वास्थ्य से जुड़े अन्य संदेश पहुंचाने में भी सक्षम है। एप को डेवलेप करने वाले बेन अंडरवुड ने कहा कि ब्रश डीजे ने चार तरह से पॉजीटिव असर डाला है। इसने लोगों को प्रोत्साहित किया है। उन्हें शिक्षित किया। इस शिक्षा को अमल में लाने में मदद की और आखिर में नतीजे के तौर पर उन्हें स्वास्थ्य मिला।
वह आगे कहते हैं कि इस रिसर्च से यह पता चलता है कि ब्रश डीजे लोगों के लिए फायदे का एप साबित हो रहा है और इस दिशा मे आगे और काम करने का रास्ता खोलता है।
ब्रश डीजे को लेकर जो रिसर्च हुई है वह ब्रिटिश डेंटल जर्नल में प्रकाशित की गई है।
साभार – इकोनॉमिक्स टाइम्स